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1 May 2024 · 1 min read

*तन मिट्टी का पुतला,मन शीतल दर्पण है*

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तन मिट्टी का पुतला,मन शीतल दर्पण है।
फूल सा यह जीवन तो.. कांटों का वन है।

कोई क्या लेकर आया,क्या लेकर जाएगा,
उसकी बंद मुट्ठी में सबका, जन्म-मरण है।

सबके पांव में घुंघरू,बंधे हैं मोह-माया के,
वो देखे किसके घुंघरू,करते छन- छन हैं।

वो चुप रहते हैं……. जिनमें कुछ होता है,
शून्य मन के बर्तन,…..करते खन खन हैं।

हर तन में विष्णु है और वही है पालनहार,
खाली पेट का भरना,पितरों का तर्पण है।

सबकी अपनी भूख है,अपनी अपनी प्यास,
बस प्रेम से ही बदला,मानव का जीवन है।

कुदरत की दुकान से जो चाहे झोल भर लो,
हरेक पत्ता मेरी नज़र में , चूड़ी कंगन है।

हर दिल से प्रेम करना.,प्रभु की आरती है,
श्रद्धा मन की धूप है और कस्तूरी चंदन है।

जो तुझको मिला है वो क्यों नहीं मोड़ता,
ख्वाहिशें असीम हैं तेरी,ये कैसा अर्पण है।
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सुधीर कुमार सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।

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