जी करता है…
जी करता है, जी भर रो लूँ।
अश्कों से गम, अपना धो लूँ।
आज मैं तन्हा खाली-खाली।
कैसे रात कटे ये काली !
शायद मन कुछ राहत पाए,
बिखरे मन के मनके पो लूँ।
जी करता है, जी भर रो लूँ।
भर-भर जिस पर प्यार लुटाया।
पल में उसने किया पराया।
गढ़ें काँच-से रिश्ते-नाते,
मन भारी किससे क्या बोलूँ।
जी करता है, जी भर रो लूँ।
गुमां न था ये दिन आयेगा।
नन्हा सुख भी छिन जाएगा।
कुदरत की सौगात समझकर,
भार गमों का हँस कर ढो लूँ।
जी करता है, जी भर रो लूँ।
कलपे रह-रह कर मन मेरा।
पलक-तले घिर रहा अँधेरा।
नाजुक सूत उलझी नेह-डोर,
छोर बिलटते, कैसे खोलूँ ?
जी करता है जी भर रो लूँ।
कितने दुख आए जीवन में।
पाए काँटे नंदन वन में।
गठरी भारी गम की क्या गम,
काँधे फौलादी, हँसके ढो लूँ।
जी करता है जी भर रो लूँ।
छलक रहा आँखों से पानी।
रोके रुकती नहीं रवानी।
सुख कोई उग आए शायद,
आस-किरन कुछ मन में बो लूँ।
जी करता है जी भर रो लूँ।
एक तरफ रख घड़ी सुहानी।
दूजे पर गम भरी कहानी।
समय-तुला के दो पलड़ों पर,
सुख-दुख दोनों रखकर तोलूँ।
जी करता है, जी भर रो लूँ।
अश्कों से गम अपना धो लूँ।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद