जीवन
मुक्तक
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शिशिर, शीत या ग्रीष्म भयंकर, राह बिछे चाहे हों शूल,
चाहे नव-बसंत मनभावन, या भादौ बरसे प्रतिकूल।
चलो पुनः जी लेता हूं अब, दुर्गम पथ पर चलते-चलते,
निकल पड़ूंगा सतत खोजने, फिर से कुछ पलाश के फूल।।
✍️ – नवीन जोशी ‘नवल’
(स्वरचित एवं मौलिक)