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17 May 2023 · 1 min read

जीवन

मुक्तक
——–
शिशिर, शीत या ग्रीष्म भयंकर, राह बिछे चाहे हों शूल,
चाहे नव-बसंत मनभावन, या भादौ बरसे प्रतिकूल।
चलो पुनः जी लेता हूं अब, दुर्गम पथ पर चलते-चलते,
निकल पड़ूंगा सतत खोजने, फिर से कुछ पलाश के फूल।।

✍️ – नवीन जोशी ‘नवल’

(स्वरचित एवं मौलिक)

Language: Hindi
1 Like · 227 Views
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