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27 Apr 2024 · 1 min read

दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस

दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
तेरह करते तीन के, सम्भव हो तो तीस
न्याय नीति ईमान से अपना पल्ला झाड़
सरकारों पर दोष मढ़, कीचड़ रहे उलीच

कीचड़ में खिलता कमल, लोग गये यह भूल
बेमतलब की बात को, ज्यादा देते तूल
खाते में धेला नहीं, मांग रहे हैं सूद
सूद नहीं मिलता कभी, यदि न जमा हो मूल

महेश चन्द्र त्रिपाठी

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