भाव जिसमें मेरे वो ग़ज़ल आप हैं
भाव जिसमें मेरे वो ग़ज़ल आप हैं
आप ही आज हैं मेरा कल आप हैं
जिसकी ख़ुशबू से रहती हूं मैं तरबतर
मन में खिलता हुआ वो कमल आप हैं
हर कसम को निभाया सदा आपने
रहते हर बात पर ही अटल आप हैं
मैं बहाती नहीं अपने आँसू कभी
आँखों में ठहरा है जो वो जल आप हैं
अब मैं तारीफ़ में आपकी क्या कहूँ
गर गगन आप हैं तो ये थल आप हैं
फ़िक करती न मैं ज़िंदगी में कभी
मुश्किलें हैं तो क्या उनका हल आप हैं
‘अर्चना’ मांगे बिन मुझको सब मिल गया
मेरे कर्मों का मानो सुफल आप हैं
डॉ अर्चना गुप्ता
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