जीवन
जीवन सुख दुख का मेला है,
इंद्रधनुषी रंगों का जैसे खेला है।
कभी खुशियों की चादर ओढ़े,
कभी गम का बहुत झमेला है।
सबके साथ कभी मस्ती,हुड़दंग,
कभी भीड़ में भी मानो अकेला है।
स्वच्छ और निर्मल चाँदनी जैसा,
कभी लगता बहुत मटमैला है।
कुसुमासव सा मधुर रस घोले,
कभी नीम पर चढ़ा करेला है।
अमृतमयी धारा प्रवाह है इसमें,
कभी लगता बहुत बिषैला है।
उतार- चढ़ाव इसमें लहरों जैसा,
फिर भी सबको लगता अलबेला है।।
By:Dr Swati Gupta