जीवन से पहले या जीवन के बाद
जीवन से पहले या जीवन के बाद
इन दोनों का हमेशा से
आपस में गहरा मेल है
दोनों ही परिस्थितियों में
शरीर नहीं रहता
सब आत्मा का खेल है ,
सुना है मरने के बाद भी
आत्मा मरा नहीं करती
ये शरीर छोड़ देती हैं
शरीर को तो ये
अपने वस्त्र की तरह
प्रयोग में लेती हैं ,
बिना आत्मा के शरीर
निष्प्राण हो जाता है
सुख-दुख कुछ भी इसको
बिना सांस के एकदम
ज़रा सा भी
समझ नहीं आता है ,
जब आत्मा ही नहीं शरीर में
फिर मुक्ति का क्या धंधा है ?
इस अजीब से ख़्याल ने
मन में उठते सवालों ने
हमारी उत्सुकता पर
डाला संशय का फंदा है ,
जीते जी शरीर ने जो भोगा
और मन ने जो महसूस किया
उसका एहसास ज़िंदा रहकर ही संभव है
जीवन से पहले या जीवन के बाद
क्या हुआ क्या होगा
ये जानना तो असंभव है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )