Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Feb 2022 · 3 min read

जीवन का स्वर्ण काल

जीवन का स्वर्ण काल
********************************
60 वर्ष की आयु वास्तव में जीवन के स्वर्ण काल का आरंभ होता है । यह जीवन का एक ऐसा मोड़ है, जहां हम एक नजर पीछे मुड़ कर देखें तो महसूस होगा कि वह रास्ता जो हमने अब तक तय किया था, लगभग सीधा और सपाट था। यह पहला मोड़ है, जहां हमें कुछ अलग होने का आभास होता है । यही वह समय है जब मनुष्य इस संसार को समझ पाता है। लोगों को समझता है, संसार की प्रवृत्तियों को समझता है, प्रकृति के रहस्यों से परिचित होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि वह जीवन की और संसार की क्षणभंगुरता को समझ लेता है ।
60 वर्ष की अवस्था में ही मनुष्य को यह बोध होता है कि एक दिन संसार से जैसे सब लोग अब तक इस संसार से जाते रहे हैं, उसे भी यह दुनिया छोड़कर जाना है । उसे मालूम हो जाता है और केवल मालूम नहीं बल्कि अनुभूति हो जाती है कि इस संसार रूपी रंगमंच पर उसे केवल 100 वर्षों के लिए अभिनय करने का समय मिला था, और 100 वर्ष के भीतर – भीतर किसी भी समय नाटक का पर्दा गिर सकता है।
60 वर्ष के बाद स्वर्ण काल तो है लेकिन केवल उनके लिए जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं ।अगर 100 वर्ष तक जीवित रहने के लिए हमारे पास स्वस्थ शरीर है ,तो हमें आगे की यात्रा के लिए 40 वर्ष मिलते हैं। यह 40 वर्ष हंसी – खुशी, उत्साह और उमंग के साथ व्यतीत हों ,तभी आनन्द है । शरीर के बोझ को साठ वर्ष के बाद अगर ढोना पड़ता है, तो इसका मतलब है कि शरीर की आयु 100 वर्ष से कम रह गयी है । ऐसे में 60 वर्ष के बाद अगर जीवन भार महसूस होता है, बुढ़ापे की परछाई हमें डंसने लगती है और जीवन का उत्साह समाप्त हो जाता है ,तब इसका मतलब है कि हम केवल मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं ।
आवश्यकता इस बात की है कि हमारी तैयारी कम से कम 100 वर्ष के लिए होनी चाहिए । इसका अभिप्राय यह है कि बुढ़ापा 90 के आसपास शुरू होना चाहिए। इससे पहले नहीं ।जीवन के आखिरी 8 – 10 साल बुढ़ापे में व्यतीत हों, यह तो समझ में आता है और उसमें भी शरीर का बोझ ढोने वाली स्थिति यह तो केवल अधिक से अधिक साल, दो साल या 6 महीने ही होनी चाहिए।
प्रकृति ने हमें 100 वर्षों के लिए जो जीवन दिया है, उसमें हम पूरी भूमिका के साथ उपस्थित हों। हमारी सक्रियता और गतिविधियां नए-नए रूपों में आकार ग्रहण करें । जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि हमें परिदृश्य से हट जाना है । जहां 100 वर्ष बीते , हमारी उपस्थिति समाप्त हो जाएगी।
तो हम इस संसार में अस्थायी रूप से ही उपस्थित हैं । बस यही चीज है, जो हमें 100 वर्ष प्रफुल्लित मन से हल्के फुल्के जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करती है। न कोई बोझ है , न कोई कामना है , न इस संसार में अमर होने की चाह है , न वस्तुओं का संग्रह करने की आशा है ,न प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है। यही वह जीवन है जिसमें 60 वर्ष के बाद व्यक्ति स्वर्णिम काल की ओर प्रवेश करता है और अपनी परिपक्व दृष्टि से, अपनी समझ बूझ और गहरी चेतना से न केवल स्वयं सार्थक जीवन व्यतीत करता है,अपितु संसार के लिए भी अपनी उपादेयता को सिद्ध कर देता है।
अंत में कुछ दोहों से अपनी बात समाप्त करूंगा :-
********************************
सेहत हो अच्छी भली, तन का अच्छा हाल
साठ साल से है शुरू,समझो स्वर्णिम काल।।
*******************************
मेडीटेशन नित करो , खाओ शाकाहार
सादे जीवन पर चलो, रखना उच्च विचार
********************************
अपने भीतर डूबना, कहते जिसको ध्यान
मदिरा से ज्यादा नशा, धन्य धन्य भगवान
********************************
लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश ) 99976 15451

Language: Hindi
Tag: लेख
1456 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

प्रेम वो भाषा है
प्रेम वो भाषा है
Dheerja Sharma
साँझ का बटोही
साँझ का बटोही
आशा शैली
नवरात्रि-गीत /
नवरात्रि-गीत /
ईश्वर दयाल गोस्वामी
*राधा को लेकर वर्षा में, कान्हा छाते के संग खड़े (राधेश्यामी
*राधा को लेकर वर्षा में, कान्हा छाते के संग खड़े (राधेश्यामी
Ravi Prakash
जीत सकते थे
जीत सकते थे
Dr fauzia Naseem shad
सुरों का बेताज बादशाह और इंसानियत का पुजारी ,
सुरों का बेताज बादशाह और इंसानियत का पुजारी ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
हम कहां थे कहां चले आए।
हम कहां थे कहां चले आए।
जय लगन कुमार हैप्पी
मैं तेरा हूँ
मैं तेरा हूँ
ललकार भारद्वाज
कलश चांदनी सिर पर छाया
कलश चांदनी सिर पर छाया
Suryakant Dwivedi
" भींगता बस मैं रहा "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
छलकते आँसू छलकते जाम!
छलकते आँसू छलकते जाम!
Pradeep Shoree
पूर्णिमांजलि काव्य संग्रह
पूर्णिमांजलि काव्य संग्रह
Sudhir srivastava
जीवन संध्या में
जीवन संध्या में
Shweta Soni
ओ मनहूस रात...भोपाल गैस त्रासदी कांड
ओ मनहूस रात...भोपाल गैस त्रासदी कांड
TAMANNA BILASPURI
अकेलापन
अकेलापन
Neerja Sharma
कहां है
कहां है
विशाल शुक्ल
” कुम्हार है हम “
” कुम्हार है हम “
ज्योति
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कब तक बरसेंगी लाठियां
कब तक बरसेंगी लाठियां
Shekhar Chandra Mitra
અનપઢ
અનપઢ
Iamalpu9492
तेरे दिल ने मेरे दिल को.जबसे तेरा पता दे दिया है...
तेरे दिल ने मेरे दिल को.जबसे तेरा पता दे दिया है...
Sunil Suman
कभी-कभी रिश्ते सबक बन जाते हैं,
कभी-कभी रिश्ते सबक बन जाते हैं,
पूर्वार्थ
आओ मृत्यु का आव्हान करें।
आओ मृत्यु का आव्हान करें।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
कमीना विद्वान।
कमीना विद्वान।
Acharya Rama Nand Mandal
2
2
*प्रणय प्रभात*
मुस्कुराता बहुत हूं।
मुस्कुराता बहुत हूं।
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
यक्षिणी- 27
यक्षिणी- 27
Dr MusafiR BaithA
वक्त लगेगा
वक्त लगेगा
Priyanshu Dixit
कुरीतियों पर प्रहार!
कुरीतियों पर प्रहार!
Harminder Kaur
3377⚘ *पूर्णिका* ⚘
3377⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
Loading...