जीवन का मूल्य
जीवन का मूल्य
रे मन
तुझे सूर्य बनना है तो बन
जो ज़िंदा है अपने ही दम से
जिसके जीवन से पृथ्वी पर जीवन है
जिसके प्रकाश से चाँद प्रकाशित है
पर मन
उसकी कथा मात्र इतनी नहीं है
वह अपनी आग से बहुत अकेला हो गया है
सब कुछ जल जाता है
करोड़ों मीलों की दूरी से
और वह
न जाने कब से
जल रहा है
निरंतर
अपनी ही आग में ।
शशि महाजन-लेखिका