जीवन का प्रथम प्रेम
साध्य साधना भाव भवना अर्घ आराधना हृदय गहराई अंतर्मन आवाहन मर्म धर्म कर्म स्पर्श अनुभव अनुभूति सच्चाई बोध भाष्य प्रेम व्यक्त अव्यक्त जन्म जीवन आत्म बोध परितोष ।।
पुष्प देवों के शीश पांवों पर चढ़ इतराता ,नवयौवना केशो का गजरा बन महकाता।।
स्वागत अभिनंदन श्रद्धा अंजली का पुष्प से रिश्ता नाता पुष्प ही भाता ।।
अप्सरा का स्वर सुंदर अभिमान पुष्प पल प्रहर संवारता बनाता ।।
देश भक्त कि राहों पग कि शूल पुष्प फूल मिटाता महिमा मंडित कर प्रेरणा परिभाषक बन जाता।।
ब्रह्म ब्रह्मांड का सत्य अर्थ बताता पुष्प कमल कर लिए देव पद्मासनी देवी पुष्प परमेश्वर अस्तित्व सच्चाई सत्य ब्रह्म ब्रह्मांड पर मर मिट जाता।।
सूर्यास्त निशा तमश कि कली कोमल सूर्योदय पुष्प उदय प्रदूर्भाव जन्म जीवन वास्तविकता समझाता।।
डाली मकरन्द से बागवा ही अलग कर पुष्प पावन को युग स्वार्थ परमात्मा परमार्थ को समर्पित कर जाता।।
सुनो साधना मन मस्तिष्क हृदय आत्म बोध गहराई से नन्ही कोमल कली फूल पुष्प युग अभिलाषा प्रत्याशा हो ।।
निर्भय निडर निर्विकार निर्विरोध निर्झर निर्मल गंगा यमुना नर्वदा ताप्ती कृष्ण कावेरी सी कल कल कल कलरव करती मुस्कानों जैसी चलती जा बहती जा ।।
तेरी धारा कि चालों से कठिन तूफान चट्टान पथ परिवर्तन को विवश हो जाएंगे व्यर्थ सोच नही सत्य साथ सब हो जाएंगे।।
प्रेम प्यार संवेदना कि पुष्पों जैसी देवो देवी का अभिमान मानव मन की कशिश कोशिश साधन साध्य आराधना साधना जैसी।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।