“जीय$अउरी जीये द$”(भोजपुरी कविता), भटक कर आतंक की राह पर जाने वाले युवाओं को समर्पित |
1-बाड़े सन हर देश में कुछ अइसन गद्दार,
जवना चलते सिसकता, मानवता-संसार |
जाति धर्म ना बा कवनों, दहशत फइलावल मकसद बा,
ना क्षमा, दया इनका अंदर, ना कवनों इनके सरहद बा |
2- करि सांठ-गांठ वो दुष्टन से, बनि जा ता लो ऊ हत्यारा ,
निज स्वार्थ पुर्ति खातिर जवन, रणक्षेत्र बनवलस जग सारा |
भोला भाला नौजवानन के फँसावेलेसन चक्कर में,
मजहब,धरम के दे वास्ता, डाले लेसन घनचक्कर में ||
3-एह दलदल में जे फँसि जाला, ओकर वजूद ना बांचेला,
माथे पर उनका साँच कहीं त$ मौगति हर दम नाचेला |
कबो पेरिस, पेशावर त$ पठानकोट ऊ रचि देलें,
कुछ निर्दोषन के करि शहीद, आपन जिनगी ऊ बेंचि देलें ||
4-ई कवन धरम निभावेले, का इनका लो के मजहब बा,
आखिर काहे इनका रग में भराइल एतना नफरत बा |
जनि झाँसा में पड़$आतताइन के, मेहनत इमान के रोटी खा |
मति धर$ रूप फिदाइन के, जीय$अउरी जीये द$ ||
5-जीय$ अउरी जीये द$,एही में असली मजा बा,
उत्पात मचवला में भाई, नाहीं त$ खाली सजा बा |
अफजल, कसाब के देखल बा, अउरी कसाब ना बन$ जा,
रक्षा कर$ जा “माता” के, अब इनके चीर न हर$ जा ||