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18 Feb 2024 · 1 min read

कलेजा फटता भी है

जब कभी किसी अपनों के ही
तीक्ष्ण बाणों की तरह चुभती
विष भरी बोली से अपना दिल
अगर छलनी छलनी हो जाय तो
मन तो हो जाता है क्षत विक्षत
अपना सम्पूर्ण अस्तित्व ही तब
लहुलुहान होकर होता है आहत
अंदर ही अंदर रोता घुट घुट कर
किसी से कुछ कह नहीं सकता
बस दिल है जो बैठता जाता है

तब हमें भी पता चलता है कि
बिना शोरगुल या आवाज के भी
कलेजा अपना फटता भी है
किसी और पर फिर क्या हो
अपनों के उपर से भी विश्वास
बिजली के तार पर बैठे किसी
पंछी की तरफ फुर्र हो जाता है
ऐसा भी एकदम नहीं है कि
सुई धागे से ही उसे फिर सी दूॅं
इस उम्मीद से कि हो न हो कभी
फिर पहले की तरह धुक धुकी
उसमें अगर कहीं जग ही जाए

Language: Hindi
50 Views
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