जिस ओर उठी अंगुली जगकी..
जिस ओर उठी अंगुली जगकी
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के आंचल से बंधा हुआ,
खिंचता आया तो क्या आया।
जो टूट पड़े दुख आंगन में
जो छोड़ गए अपने रण में
की क्यों जीवन की लय धीमी
कुछ ना खोया तो क्या पाया
जग के आंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया
कर ले दुगुना उत्साह पथिक
मत ढूंढ़ राह में छा ह पथिक
तू जीत के सागर में जाकर
प्यासा आया तो क्या आया
जग के आंचल में बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया
गर आंसू तुझको आग लगे
गर निर्मल तुझको छांव लगे
जो लक्ष्य की बेदी पर जाकर
दुख ना पाया तो क्या पाया
जग के आंचल में बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया
लघुता को अपनी कर महान
गा गा कर करना फिर बखान
झूठे रागो को दे मधुता ,
गर दोहराया तो क्या गाया
जग के आंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया।
©~Priya maithil