जिसको देखो सेंध लगाते हैं, सरकारी माल में
जिसको देखो सेंध लगाते, हैं सरकारी माल में
नेता अफसर और माफिया, छुपे हुए हैं खाल में
जनसेवा के नाम पर नेता, कमा रहे हर हाल में
अफसर और माफिया मिलकर, फंसा रहे हैं जाल में
सड़क भवन खा जावें मिलकर, कमीशन खाएं दबाओं में
राहत में खा जाएं बाढ़ की, कुपोषण के खाद्यान्न में
बैरियर लगाकर पुलिस कमाती, कागज चेकिंग की आड़ में
दफ्तर में हर बात का पैसा, खाते हैं वे भाड़ में
जिधर भी देखो लूट मची है, हर सरकारी माल में
शातिर और चालाक भेड़िए, फंसते नहीं है जाल में
योजनाओं को लगा पलीता, बैठे-बैठे अमृत पीता
पहुंचना पातीं हितग्राही तक, देख रहा हर साल में
बदल रही सत्ता सरकारें, कमी नहीं है अहं सबाल में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी