जिंदगी को बोझ नहीं मानता
जिंदगी को बोझ नहीं मानता,
बोझ तन पर मन पर l
जिम्मेदारी का क्यों ना हो?
अकेले ही चला जाना है l
जिंदगी की कटीली पथरीली ,
कंकरीली राहों में ll
सुनसान जगह अंजान राही ,
अंजान पथिक यूं ही।
चले जाना ही अक्ल बंदी ,
दस्तूर दुनिया का यही मीलो दूर ।
मंजिल को पाना ही ध्येय,
इंसान वही जो पथभ्रष्ट ना हो।।
निरंतर अपनी मंजिल की तरफ,
चलने का अभिलाषी हो ।
दुख सुख को समान समझना,
लाभ हानि को बराबर मानकर।
जिंदगी की चमक धमक से दूर,
सन्यासी जैसा जीवन जीना ही जिंदगी।।
सतपाल चौहान।