Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Feb 2024 · 2 min read

जिंदगी कि सच्चाई

जिंदगी की सच्चाई—-

जिंदगी के लम्हो में साथ
साथ जिया हमने गांव की
गलीयो में पचपन की शरारत
के दिन बीते।।
साथ साथ स्कूल गए
ना जाने कब बचपन पीछे
छूट गया युवा यौवन में
दुनिदारी समाज की राहों
देखे।।
ना जाने कब ऐसे दिन आये
एक दूजे के बिन लम्हा भी
वर्षो जैसा प्यार इसी को
कहते है दुनियां ने बतलाते।।
वह भी मेरी चाहत थी उसका
अरमान मैं हम दोनों के बीच
नही था कोई सीमा रेखा का
बंधन।।
दुनियां को ना जाने कैसे रास
नही आयी हम दोनों की दुनियां
मोहब्बत की अंगड़ाई।।
लाख कोशिशें दुनियां ने की
करने को जुदाई दुनियां हारी
जीते हम साथ साथ कब्र में
सोए हम।।

जाने कितनी रूहे नीद में खामोश यहां
देख रहा है खुदा अपने बंदों को बैठे मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे से मौन।।

दुनियां में जब जागे जिंदा थे
जाने कितने ही अरमान इरादे थे
कुछ परवान चढ़े कुछ साथ दफन हुए।।
नीद टूटने का इंतजार जगने
जिंदा होने का इंतज़ार शायद मील जाए दुनियां में इंसानी परिवार समाज।।।

कायनात के कयामत के दिन आएंगे
जीजस खुदा ईश्वर फिर अपना फरमान सुनाएंगे जब जागे थे दुनियां इस नीद से थे अंजान।।

जिस्म जान की खुशियों की
खातिर जाने क्या क्या किया
उपाय खुद को बादशाह समझते
दुनियां मुठ्ठी में करने की चाह।।

गुजर गए जाने कितनी ही राह
करते खुद खुदा को शर्मसार।।
खामोश पड़े वीरानों में जिस्म गल गया हड्डी बची नही बच गया
दुनियां के लम्हो का लेखा जोखा
कब्र में रूहानी अंदाज़।।
रूहे अंजान नही अपने जिस्मानी
लम्हो कदमों से गहरी नींद में भी बाते करते दुनियां में अपने जिंदा रहते
क्या खोया क्या पाया जज्बात।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
54 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
धड़कनें जो मेरी थम भी जाये तो,
धड़कनें जो मेरी थम भी जाये तो,
हिमांशु Kulshrestha
जाने  कैसे दौर से   गुजर रहा हूँ मैं,
जाने कैसे दौर से गुजर रहा हूँ मैं,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
■ हाय राम!!
■ हाय राम!!
*Author प्रणय प्रभात*
मैं अंधियारों से क्यों डरूँ, उम्मीद का तारा जो मुस्कुराता है
मैं अंधियारों से क्यों डरूँ, उम्मीद का तारा जो मुस्कुराता है
VINOD CHAUHAN
जिंदगी में.....
जिंदगी में.....
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
हम बात अपनी सादगी से ही रखें ,शालीनता और शिष्टता कलम में हम
हम बात अपनी सादगी से ही रखें ,शालीनता और शिष्टता कलम में हम
DrLakshman Jha Parimal
मेरी आंखों में कोई
मेरी आंखों में कोई
Dr fauzia Naseem shad
*श्री सुंदरलाल जी ( लघु महाकाव्य)*
*श्री सुंदरलाल जी ( लघु महाकाव्य)*
Ravi Prakash
किसान भैया
किसान भैया
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
पति
पति
लक्ष्मी सिंह
कर मुसाफिर सफर तू अपने जिंदगी  का,
कर मुसाफिर सफर तू अपने जिंदगी का,
Yogendra Chaturwedi
यूँ तो समुंदर बेवजह ही बदनाम होता है
यूँ तो समुंदर बेवजह ही बदनाम होता है
'अशांत' शेखर
★मां ★
★मां ★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
अनेकों पंथ लोगों के, अनेकों धाम हैं सबके।
अनेकों पंथ लोगों के, अनेकों धाम हैं सबके।
जगदीश शर्मा सहज
नीचे तबके का मनुष्य , जागरूक , शिक्षित एवं सबसे महत्वपूर्ण ब
नीचे तबके का मनुष्य , जागरूक , शिक्षित एवं सबसे महत्वपूर्ण ब
Raju Gajbhiye
कितनी अजब गजब हैं ज़माने की हसरतें
कितनी अजब गजब हैं ज़माने की हसरतें
Dr. Alpana Suhasini
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ये गजल बेदर्द,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ये गजल बेदर्द,
Sahil Ahmad
3072.*पूर्णिका*
3072.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कुछ तो उन्होंने भी कहा होगा
कुछ तो उन्होंने भी कहा होगा
पूर्वार्थ
कितना रोके मगर मुश्किल से निकल जाती है
कितना रोके मगर मुश्किल से निकल जाती है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
बहू बनी बेटी
बहू बनी बेटी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
वो आए और देखकर मुस्कुराने लगे
वो आए और देखकर मुस्कुराने लगे
Surinder blackpen
आँखे हैं दो लेकिन नज़र एक ही आता है
आँखे हैं दो लेकिन नज़र एक ही आता है
शेखर सिंह
तेरा सहारा
तेरा सहारा
Er. Sanjay Shrivastava
दोय चिड़कली
दोय चिड़कली
Rajdeep Singh Inda
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
दुष्यन्त 'बाबा'
प्रकृति का बलात्कार
प्रकृति का बलात्कार
Atul "Krishn"
शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
Dr.Pratibha Prakash
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
SATPAL CHAUHAN
चीरहरण
चीरहरण
Acharya Rama Nand Mandal
Loading...