जानते है
सुखन सराई कर्ब-ज़ा है रवाँ² जानते हैं
हम ज़माने से सबकुछ अयाँ जानते हैं
राह-ए-हक़ पर सबको चलना अकेले हि
साथ देगा न कोई राज़-ए-निहाँ जानते हैं
मुझसे इश्क है तो गले लग इजहार करो
यार शायर है हर ख़ामोश ज़बाँ जानते हैं
मिल भी जाओगी फिर भी बदलेगा नइ कुछ
इश्क में सावन संग फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ जानते है
दावा करते रब्बुल-अर्बाब को भी समझने का
पर हम यहाँ ठीक से ख़ुद को भी कहाँ जानते हैं
युहीं नहीं शराब सिगरेट छोड़ अज़ाब पे आ गए
कुनू इश्क से ख़ारिज हो अब हर निशाँ जानते हैं