जाग री सखि
नव कोंपल सी शर्मा ती लजाती रितु,
शुष्क पीले पातों से थरथराती रितु।
अधरों से रागिनी गुनगुनाती ऋतु,
सरसों से धरती लहलहा ती ऋतु।
नवागत के स्वागत में उमग ते पेड़,
कोयल की मीठी कूक से लरजते पेड़।
बसंती बयार के स्पर्श से झूमते पेड़,
नवजीवन के मधुर तराने सुनाते पेड़।
कुहासे से लिपटे परिवेश में चमकता सूर्य,
तन मन को धूप सेआलोपित करता सूर्य।
मन पर छाई धुंध को विलोपित करता सूर्य,
चहूं और राग अनुराग को आरोपित करता सूर्य।
जाग री सखी अब ना हो उदास अनमनी,
बजा बस मस्ती में प्रेम की रागिनी।
मौसम ने करवट ली हवा बनी सुहानी,
छा चुकी है परिवेश में खुशियाँ नूरानी।