ज़िम्मेदार कौन है??
कभी जान थी इनमें भी
थीं मनमोहक सुंदर सी छवि
इन फूलों पत्तों में
बसती थी जान कभी
आज मुरझाईं है कलियां इनकी
कल तक थीं जो खिली खिली
कल तक जो रंगो से रंगी थी
आज़ बेजान सी पड़ी हुई हैं
इनके हालातों का ज़िम्मेदार कौन है
क्या ये ज़िम्मेदार हैं
नहीं इनकी क्या गलती है
क्या ये ख़ुद से ही ख़ुद को तोड़ सकती हैं
हां समय आनें पर ज़रूर मुरझाकर टूट जाती हैं
लेकिन किसी स्वार्थी ने इन्हें तोड़ा है
इन्हें ही नहीं इनकी सुंदरता को
इनकी महक को इनसे छीना है
अपने कोरे कागज़ के पन्नों को जो रंगना था
कल तक जिनमें जान थी
थी बहारें थी हरियाली
तोड़ते ही टूट गई बेजान सी आज़ हो गई
किसी को किसी की मर्जी के बिना तोड़ना
तोड़ता नहीं उसे बल्कि उसे ही तोड़ देता
सज़ा उम्र भर की बिना मांगे दे देता
प्यार खेल नहीं है खेल सकें
प्यार में मिट जाए आस्तित्व जो
वो प्यार नहीं एक हत्या है
_ सोनम पुनीत दुबे