ज़िंदगी
कभी कड़वे और कभी मीठे पलों से मिलाती है ज़िंदगी,
अपने एवं अपनों के लिए जीना सिखाती है ज़िंदगी।
गिरती है, उठती है, अपने पैरों पर खड़ा कराती है ज़िंदगी,
नित्य नये-नये सबक यह मनुष्य को पढ़ाती है ज़िंदगी।
ग़म में रोती है और पीड़ हिज़र की सह जाती है ज़िंदगी,
खुशियाँ में यह गीत इश्क-मुहब्बत के भी गाती है ज़िंदगी।
हो अगर दिड़ विश्वास और कुछ कर-गुज़रने का जज़्बा,
फिर तो यह पहाड़ों के साथ भी जा टकराती है ज़िंदगी।
हो सबर संतोष और खुन पसीने की सुच्ची कमाई जहाँ,
उस आंगन में यारों पल–पल फिर मुस्कुराती है ज़िंदगी।
कई अपने तो यहाँ शत्रु बन कर धोखा दे जाते हैं यारों ,
पर गैरो को भी कई बार अपना यह बनाती है ज़िंदगी।
मनदीप इस ज़िंदगी को समझने वाले पीर पैग़म्बर बनते है,
नित्य ही नयी बुझारत यह मनुष्य आगे डालती है ज़िंदगी।
मनदीप गिल्ल धड़ाक