जहाँ मुर्दे ही मुर्दे हों, वहाँ ज़िंदगी क्या करेगी
बीमारों की बस्ती में, ज़िंदादिली क्या करेगी,
जहाँ मुर्दे ही मुर्दे हों, वहाँ ज़िंदगी क्या करेगी।
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दौलतें, शान-ओ-शोहरतें, पोशीदा हक़ीक़तें हैं,
दिखावटी ज़माने में, तुम्हारी सादगी क्या करेगी।
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हुस्न है, शबाब है, ख़ुश-फ़हमियां हैं, गुरूर है,
ज़ज़्बात सिमटे, लहू ठंडा, दीवानगी क्या करेगी।
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सफ़र चौबीसों पहर, लेकिन बदलता नहीं मंज़र,
दिल किसी कब्जे में है, ये आवारगी क्या करेगी।
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वो और होंगे, जो इश्क़ में लंबी आहें भरते होंगे,
हमें हिज्र की परवाह नहीं, नाराज़गी क्या करेगी।