जलन
पास में बैठकर, लोग छलते बहुत हैं
किसी को बढ़ता देख जलते बहुत हैं
मेहनत करना तो, बसकी नहीं रहा
हराम का खाने को मचलते बहुत हैं
लोगों की आंखों में, मिर्च झोक कर
यहां पर खोटे सिक्के चलते बहुत हैं
उस ईश्वर से भी डरना छोड़ दिया है
गला काट के, लोग उछलते बहुत हैं
ये बड़ी दुरंगी दुनिया है, आजाद जी
मतलब के लिए रंग बदलते बहुत हैं,
– कवि आजाद मंडौरी