*जरा आगोश मे तो आओ हम होश में नहीं”
*जरा आगोश मे तो आओ हम होश में नहीं”
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जरा आगोश में तो आओ हम होश में नहीं,
यूँ अधर में न छोड़ जाओ हम होश में नहीं।
देख हुश्न ए भरी पटारी मेरी जान पर पड़ी है,
यूँ मंद – मंद मत मुस्कराओ हम होश में नहीं।
मुखड़ा चाँद का टुकड़ा नजर हटती नहीं है,
यूँ नजरों के तीर मत छोड़ो हम होश में नहीं।
तुम्हें देखते ही हम जाएं प्यास बुझती नहीं है,
प्यासे पंछी न और तरसाओ हम होश में नहीं।
बूँद बूँद रस गिरा कर यूँ न ल इम्तिहाँ हमारा,
दिल पै बिजलियाँ न ढाओ हम होश में नही।
जोबन का रंग गुलाबी मनसीरत किधर जाएं,
इश्किया रंग रंगती जाओ हम होश में नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मानसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)