जब तुम नहीं हो (अतुकांत )
“जब तुम नहीं हो”
? ? ? ?
कल तुम अपनी राह पर जाओगे
साथ गुजारा वक्त याद आएगा
जब किया प्रेम एक दूसरे से
एक दूसरे की परवाह की
आशा दिखाई
उज्जवल भविष्य की
तुम्हारे प्यार को सहेजा संवारा…
क्या तुम्हारा प्रेम सच्चा था?
या था मेरा बस एक मधुर स्वप्न …
बहुत समय हुआ….
हमें बातें किए
कितना वक्त हुआ….
साथ -साथ टहले
हाथ थामकर
कुछ तुम्हारी
कुछ मेरी बातें
हमें जोङती
अतरंगी बातें
नहीं जान पाता दिल…..
तुमने मुझे याद किया
नहीं किया
लेकिन मैंने तुमको
हर पल याद रखा
सोते जागते
दुख में सुख में
राते बीतती गईं
दिन गुजरते गए
किसी के इंतजार में….
जिंदगी वही की वहीं है..
पहले की तरह एक’खेल’
नहीं हो तो बस ‘तुम’
कितना पागल है मन…
आज भी कर रहा इंतज़ार
शायद आओगे
दुनिया भर के गम समेटे
पलकें बिछाए
बैठी हूँ मैं
कितनी पागल हूं मैं ……….॥”
अंकिता