जन-मन की भाषा हिन्दी
काव्य सृजन–
हिन्दी गीत लेखन –
जन-मन की भाषा हिन्दी–
भारत की मातृभाषा का,अखिल विश्व सम्मान करेगा।
जब तक रहेगी हिंदी जग में, मेरा हिन्दुस्तान रहेगा।
राम,श्याम,नानक,कबीर से, युगधारों का मान रहेगा।
जब तक रहेगी हिंदी जग में, मेरा हिन्दुस्तान रहेगा।
सप्त सुरों में सरगम नाचें, पनघट पर पायल के घुंघरू।
गीत,गजल,दोहे, चौपाई, शिव शंकर का बाजे डमरू।
भेद खुलेंगे अगम निगम के,गिरिजा का वरदान रहेगा।
जब तक रहेगी हिंदी जग में, मेरा हिन्दुस्तान रहेगा।
लय रस भाव मधुर माधुर्य,है भाव सरसता गीतों में।
अलंकार,रस, पद विधान से, है सरल गेयता छंदों में।
मंगलमय,मनहर,मनभावन,गद्य-पद्य का रसपान रहेगा।
जब तक रहेगी हिंदी जग में, मेरा हिन्दुस्तान रहेगा।
प्राणों में अमिय रस घुलता, मधुर भजन संगीत गूँजते।
गली-गली औ नगर गाँव में, मस्तानें तब पाँव थिरकते।
नन्हा बचपन मीठी लोरी, चंदा का गुणगान रहेगा।
जब तक रहेगी हिंदी जग में, मेरा हिन्दुस्तान रहेगा।
मेघ मल्हार,ठुमरी, कजरी, चौपाल सजें मस्तानों से।
महफ़िल में गूंजेंगे किस्सें, बलिदानी वीर जवानों के।
राम-भरत के प्रेम भाव का,घर-घर में यशगान रहेगा
जब तक रहेगी हिंदी जग में, मेरा हिन्दुस्तान रहेगा।
✍️ सीमा गर्ग मंजरी
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश