~~~जज्बात~~~
इतने
जज्बात निकलेँगेँ
दिल से मेरे
कभी सोचा न था
सोने न देंगें
चैन से
रात भर मुझे
कभी सोचा न था
बयां कब तक करूँ
कहाँ तक करूँ
ख़त्म न होंगें यह
कभी सोचा न था
लिखते लिखते
थकने लगी हैं
उंगलियां भी मेरी
निकलते रहेंगें
यह हर रोज इस तरह
कभी सोचा न था
थक जाएँगे लोग भी
पढ़ते पढ़ते
यह अशफाक मेरे
उफ़…कब ख़त्म होगा
यह सिलसिला
कभी सोचा न था ।।
…विनोद चड्ढा…