छोड़ चली तू छोड़ चली
(शेर)- जो था अब तक पत्थर दिल, देखो कैसे वह पिघला।
होकर विदा जब उसका लहू , आज जो उससे दूर चला।।
रोता है वह आज बहुत ही, उसकी विदाई करते समय।
जिसमें बसी है जान उसकी, वह जो उसको छोड़ चला।।
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छोड़ चली तू छोड़ चली।
बाबुल का घर तू लाड़ली।।
सूना हुआ घर बाबुल का।
छोड़ चली जो तू लाड़ली।।
छोड़ चली तू —————–।।
लाड़ लड़ाया तुमको माँ ने बहुत।
प्यार किया है बाबुल ने भी बहुत।
सूना हुआ आंगन बाबुल का।
छोड़ चली जो तू लाड़ली।।
छोड़ चली तू ——————-।।
खेली बहुत तू जिन गलियों में।
झूली झूला तू जिन बागियों में।।
नहीं अब रौनक कुछ भी वहाँ,
छोड़ चली जो तू लाड़ली।।
छोड़ चली तू ——————–।।
रोये माँ की ममता बहुत आज।
रुकते नहीं आँसू बाबुल के आज।।
रोये लिपटकर तुझसे सहेलियां।
छोड़ चली जो तू लाड़ली।।
छोड़ चली तू ——————-।।
तेरे ये खिलौने, तेरी ये गुड़ियां।
इनको देख भर आती है अँखियाँ।।
किसके संग अब ये खेले साथी।
छोड़ चली जो तू लाड़ली।।
छोड़ चली तू ——————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)