छोड़ी घर की देहरी ,छोड़ा घर का द्वार (कुंडलिया)
छोड़ी घर की देहरी ,छोड़ा घर का द्वार (कुंडलिया)
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छोड़ी घर की देहरी ,छोड़ा घर का द्वार
नई उड़ानें भर चली , नारी अब संसार
नारी अब संसार , न सीमा रही रसोई
नारी होती हीन , न कह पाता अब कोई
कहते रवि कविराय ,श्रेष्ठता नर की तोड़ी
नर को दिया पछाड़ ,पुरुष-निर्भरता छोड़ी
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देहरी = द्वार पर लगी चौखट की जमीन वाली लकड़ी या पत्थर ,दहलीज, घर के मुख्य द्वार का बाहरी भाग
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451