छोड़कर एक दिन तुम चले जाओगे
छोड़कर एक दिन तुम चले जाओगे
सारी रस्मे जहां की निभा जाओगे
मैं अकेला तुम्हे याद करता रहूंगा
मुझसे मिलने कभी तुम आ जाओगे।
पहले जैसा नही तुम पे अधिकार होगा
तुम जो भी कहो मुझको स्वीकार होगा
ग़म के बादल जो आये हिचकना नही
तेरी खातिर वही मेरा किरदार होगा।
तुम रहो सामने दिल यही चाहता है
जब भी चाहूं लगा लूँ गले चाहता है।
पूरी होती नही हसरतें दिल की सारी।
तू जहां भी रहे खुश रहे चाहता है।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’