छोटे गाँव का लड़का था मैं
छोटे गाँव का लड़का था मैं
वो बड़े शहर वालीं थी
सपने थे छोटे मेरे
वो आसमान को चाहती थी
बाहर से जैसी दिखती वो
अंदर भी वैसी रहती थी
पहनती थी simple कपड़े बहुत
चेहरे पर सादगी सजती थी
बड़ी-बड़ी कठिनाईयों का मैं
हंसकर कर सामना करता था
छोटी-छोटी मुश्किलों से वो
एकदम घबरा जाती थी
गाँव का ग्वार था मैं
वो शहर की सयानी थी
करता मैं राम-राम सबको
वो हैलो नमस्ते वाली थी
मैं गाँव की गालियों में घूमता
वो महलों में रहती थी
खूब पसन्द था मुझे दाल-भात
वो पिज्जा खाया करती थी
मन था उसको मित्र बनाऊं
पर न करके वो चली गई
क्यूँ कि !
छोटे गाँव का लड़का था मैं
वो बड़े शहर वालीं थी !
✍️ The_dk_poetry