चौराहा
आज गली के चौराहे पर भीड़ थी
कोई जा रहा था कहीं
कोई कहीं से आ रहा था
आते जाते लोगों के मध्य
कहीं भटक गया चौराहा
पीठ के बल या पीठ बदल
बिखर गये दल
इधर उधर
डगर पर लौट रहे सब
एकांत निर्बल वो चौराहा
ताकता रहा हर पल
हर ओर
सुबह भी भीड़
शाम भी उसी तरह
हर ओर शोर
बस शोर शराबा
रोज़ की तरह
इस चौराहे पर
मनोज शर्मा