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24 Jan 2024 · 1 min read

तबियत बदलती है

सुखन गोई तबी’अत बदलती है
मुतवातिर ख़िबरत बदलती है

इश्क करो तो क़ितमीर रख कर
वक़्त वक़्त पे जरूरत बदलती है

मत करो खर्च मुझपे उम्र ओ इश्क
आवारा हूॅं पल पल लज़्ज़त बदलती है

यक़ीन करूँ भी तो कैसे अख़बार पर
चंद पैसों पे मियाँ हकीकत बदलती है

फूजूल है मिरा कहना बहिश्त किसी को
यार मिनटों में मिरी फ़राग़त बदलती है

इक मुनाफ़ा ये भी है तमस में जी कर कुनु
कि क़ल्ब अश्क़िया से नफ़ासत बदलती है

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