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17 May 2024 · 1 min read

प्यारी रात

सुबह का जोगी
गेरुआ वस्त्र पहने
लेकर अनूठा इकतारा
सूर्य अराधना मे रत।
प्रचंड तेजस्वी
तपती दुपहरी
अपने तप के तेज से
करती व्याकुल इंद्रासन।
सौम्य साध्वी संध्या
बिखेर कर रोली
करती विहग-गीतों से
मुखर अपनी रंगोली।
चुपके से आती है प्यारी रात
सबको सुलाती दे थपकी
सबका श्रम हरकर
उन में नव जीवन भरती।
उसकी कालिमा
उपेक्षणीय नहीं है
ग्रहणीय है
प्रशंसनीय है।

प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)

Language: Hindi
1 Like · 72 Views
Books from PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
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