चौपाई छंद में सौलह मात्राओं का सही गठन
सौलह मात्रिक /चौपाई छंद का सही गठन
( सौलह मात्रिक छंद का परिभाषा उदाहरण सहित गहन और सूक्ष्म बिन्दुवार आलेख ~
एक सफल छंदकार का ,सौलह मात्रिक. छंद / चौपाई छंद _की चाल पर अधिकार होना अत्यंत आवश्यक है।, आल्हा, ताटंक, लावणी, सार, सरसी , रास छंद , निश्चल छंद चौकड़िया , शंकर छंद विष्णुपद इत्यादि प्रमुख छंदों का आधार चौपाई ही है
क्योंकि इन छंदों के पद का प्रथम 16 मात्रिक चरण चौपाई का ही चरण है। मात्र 16 मात्रा गिना देना काफी नहीं है , जरुरी है 16 मात्राओं का सही गठन |
अनुभव किया कि कई मित्र सौलह मात्रिक चौपाई गठन से पर्याप्त परिचित नहीं है और सौलह मात्राएं गिन लेते है ,
चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। जैसे-
ग्रीष्म ताप को चढ़े जवानी | बादल बने प्यार का दानी |
रोम-रोम में खिले कहानी | बरसे जब भी पहला पानी ||
इसके एक चरण में सौलह मात्राएं होती हैं, दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त चौकल से ( 22 – 112- 211 – 1111 से होना नितान्त आवश्यक है।
इसी यति / पदांत विधान से 99 प्रतिशत चौपाई व अन्य छंद सृजित है , एक प्रतिशत चौपाई में यति रगण 212 से भी है , यह क्यों व कैसे है , हम इस विषय पर कुछ नहीं कहना चाहते है और न तर्क बहस में पड़ना चाहते है , हम 99 प्रतिशत के साथ सहमत है |
आजकल देखने में आ रहा है कि कुछ ज्ञानी मान्यवर हो या पटल अधिष्ठाता रगण 212 से चौपाई में यति पदांत करने को करते है व प्रोत्साहित भी करते है , तो वह करें हमें कोई लेना देना नहीं है , पर हम रगण 212 से करने का निषेध करते है | क्योकिं हिंदी में सृजन के लिए अथाह शब्द भंडार है , और जो चौकल से यति चरणांत करने पर जो छंद में निखार और सौन्दर्य आता है , वह रगण से करने पर नहीं आता है
चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4
अठकल = 8 – अठकल के दो रूप होते हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है , किंतु चौपाई में प्रथम अठकल में 3 3 2
के कोई भी रुप ला सकते है , परन्तु दूसरे अठकल में 332 का इस प्रकार प्रयोग करें कि यति या पदांत चौकल हो
जैसे –
लोभी धन का ढेर लगा+ता | पास नहीं संतोषी माता ||
हाय-हाय में खुद ही पड़ता | दोष सुभाषा सिर पर मढ़ता ||
उपरोक्त चौपाई में ~ लोभी धन का ( एक अठकल + ढ़ेर +लगा +ता दूसरा अठकल ) √
हाय हाय में ( एक अठकल +खुद ही पड़ता | दूसरा अठकल )
चौपाई में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।
चौकल = 4 – चौकल में चारों रूप (1111~ 11 2~2 11,~22) मान्य रहते हैं।
चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे सुभाष प्रकाश प्रकार आदि नहीं आ सकते।और न गेय लय आ सकती है और गेयता ही छंद के प्राण होते है
(जैसे -कहता सुभाष देख जमाना ) यहाँ चार चौकल है पर लय इसलिए नहीं है कि कहता के बाद सुभाष पूरित जगण है
चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता।
चौकल में 3+1 करो न मान्य है परन्तु 1+3 ( न करो )मान्य नहीं है।
‘करो न’ पर ध्यान चाहूँगा, 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। करो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में ‘न करो’ मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।
3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो चरण के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। ‘करे न कोई’ से चरण का अंत हो सकता है ‘कोई करे न’ से नहीं हो सकता है `
चौपाई कभी भी जगण 121 से प्रारंभ नहीं हो सकती है
जैेसे – सुभाष बोला सुनो सभी अब (लय नहीं आ सकती है }
अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। ‘राम काज हित सही है जबकि ‘हित राम काज ” गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।
पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता। ‘
जैसे – तुम सुभाष अब आगे बढ़ना |√
तुम सुभाष अब ’ में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘तुम सु ’ और ‘भाष ये दो त्रिकल तथा ‘अब ’ द्विकल बना रहा है।
इसी तरह चौथी मात्रा से जगण प्रारंभ हो सकता है जैसे – ताप प्रकाश न उसने देखा |
‘ताप प्रकाश न’ में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ होकर ‘ताप प्र ’ और ‘काश न’ के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।√ है
इसी तरह से यह निम्न नियम से चरण यति देखें-
वह सुभाष से रखे न नाता |√
“वह सुभाष से” अठकल तथा तीसरी मात्रा से जगण प्रारंभ।√ है
“रखे न” खंडित चौकल “नाता” चौकल। √ है
पर यति पर
“नाता रखे न” लिखना × है क्योंकि खंडित चौकल चरण के अंत में नहीं आ सकता।
यह आलेख आप सम्हाल कर रखे, क्योंकि बहुत से छंदों में 16 मात्रा विषम चरण में होती है , जो चौपाई चाल से चलती है
आपके सदैव काम आ सकती है
सादर
सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
, निवासी जतारा जिला टीकमगढ ( म०प्र०)