चुनावी वादें..।
नेता जी चूनाव में
मेरे घर आये
डफली बजाई
मीठी राग भी सुनाये।
बोले हम इस बार
नहर खोदवायेंगे
विकास रुपी गंगा
चहूओर हम बहायेंगे।
बस एक बार हम पे
भरोसा दिखाईये।
हमको भी एक बार
बहुमत से जीताईये।
सबको जीताया है
अबकी बारी मेरी है,
भरोसा रखे हमपे
कैसी मजबूरी है।
हाथ जोड़ खड़े थे
पैर भी पड़े थे
वादा पीछले नेता के
पांच वर्ष सड़े थे।
अनुभव के आगे
मौन हम खड़े रहे
पीछले नेता जी भी
यही सब कहे रहे।
किसे कहें झूठा
और कहें किसे अच्छा
सुरत है भोली और
नीयत है कच्चा।
अजीब है मूसीबत
करें किसपे भरोसा
थाल भरा धोखे का
सबने परोसा।
सोचता हूँ इस बार
वोट ना करूँगा
आगे से खूद ही
चूनाव मैं लड़ूंगा।
पर इससे समस्या का
हल होगा कैसे
लड़ूं जो चूनाव तो
लगेंगे कितने पैसे?
बात आके पैसो पे
अटक सी गई थी
लगा मति भ्रम में
भटक सी गई थी।
खर्च करके जीते तो
काम होगा कैसे
विकास जो किया तो
ना निकलेंगे पैसे।
©®……..
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”