चित्र उकेरना
एक कलाकार अनेक रंगों से चित्र में
भर देता है जैसे प्राण वायु
अनेक रंगो मे एक रंग लाल बढ़ाता हैं छवि
जैसे सूर्यास्त अपनी लालिमा को समेट रहा हो
लाल रंग,रंगे आज़ादी के दीवानों की शहादत भी
माँ का सीना कर देता फक्र से ऊंचा लाल रंग
सुभाष ने माँगा जो ख़ून ओर भरी थी हुंकार
जलाई मशाले आजादी,लाल रंग की मशाल
बन गई मिसाल,लालो ने भारत माँ के दी कुर्बानी
हरे रंग को भरा लगे जैसे प्रकर्ति भी हो श्रंगार में साथ
होली के अनेक रंगो सा लगे कलाकार का काम
एक रंग रंग से दाल देता अपने चित्र में जान
सूर्यास्त का रंग केसरिया लगता जैसे आजादी के दीवाने
चूम कर फाँसी का फंदा चले माँ को आजाद कराने
ब्याहने चला आजादी की दुल्हनियाँ को सजाकर
साँझ की रुपहली अदा जैसे बिखेर देती हैं नई छटा
बादलों की सफ़ेद छवि मानो ,प्रतिक शांति का
सफ़ेद रंग है शांति का प्रतीक कलाकार की साफ
मनःस्थिति को सामने प्रकट कर देती हैं मानो उसके
चित्रण में बनाई गई आकृति रूप ले रही हो शांति का
इससे ही होता निर्माण इन्द्रधनुषी रंगो का,साँझ के चित्र का
जब पड़ती हैं अस्त होते सूरज ,की किरणें सतरंगी सी
तो अहसास होने लगता हैं अगली सुबह के आगमन का
पर नही कोई पोतता हैं रंगों को आसमान में इस तरह से
रंगे सफेदी,लालिमा,सफेदी,कालिमा,हरियाली
एक कलाकार भर देता है अपने पटल पर उभरे चित्र को
केवल शांति का का प्रतीक बना उस चित्र को