*”चित्रगुप्त की परेशानी”*
“चित्रगुप्त की परेशानी”
“तूने अजब रचा संसार खिलौना माटी का ”
सृष्टि रचना के निर्माण में उद्देश्य से ,जब भगवान विष्णु जी ने अपनी योगमाया से सृष्टि की कल्पना करी ,तो उनके नाभि से एक कमल पुष्प निकला। उस पर प्रजापति ब्रम्हा जी की उत्पत्ति हुई जो ब्राम्हण्ड की रचना व सृष्टि के निर्माता कहलाए।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रम्हा जी के कई संताने थी।जिनमें से ऋषि ,वशिष्ठ ,
नारद व अत्रि जो उनके मन से पैदा हुए और उनके शरीर से पैदा हुए कई पुत्र जैसे – धर्म,
भ्रम ,वासना ,मृत्यु ,भरत सर्वविदित है लेकिन परमपिता ब्रम्हा जी के अंश से 13 पुत्र उत्पन्न हुए। चौदहवें पुत्र श्री चित्रगुप्त जी देव हुए हैं जो यमराज के सहयोगी हैं।
जीवों को सजा देने का कार्य सौंपा गया था।धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की माँग की… तभी ब्रम्हा जी ने ध्यान साधना में लीन हो हजारों वर्षों तक तपस्या करने के बाद एक दिव्य पुरुष उत्पन्न हुआ उस पुरुष का जन्म ब्रम्हा जी के माया से हुआ था।अतः ये कायस्थ कहलाए और जिनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।
हाथों में किताब ,कलम ,दवात लिए हुए कुशल लेखक है इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है।
मनुष्यों को मृत्यु के पश्चात पृथ्वी पर उनके द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर स्वर्ग ,नरक का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त जी के पास ही है ,अर्थात किसको स्वर्ग मिलेगा कौन नर्क में जायेगा ये निश्चित करते हैं।
चित्रगुप्त जी हिंदू धर्म के प्रमुख देवता हैं वेद पुराणों के अनुसार धर्मराज चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप पुण्य का लेखा जोखा करके न्याय करने वाले बताए गए हैं।
निवास स्थान – संपमनी
संबंध – सनातन देवता
मंत्र – ॐ यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय वै नमः
अस्त्र – लेखनी व तलवार
जीवनसाथी – चित्रगुप्त जी की पत्नी चित्रकूट व नर्मदा के समीप बाल्मीकि क्षेत्र में स्थापित करने भेजा था ।उनका विवाह नागकन्या देवी बिंबवती से हुआ था।
चित्रगुप्त जी की दूसरी पत्नी – सूर्य पुत्री दक्षिणा थी।
इनसे उनके चार पुत्र उत्पन्न हुए जो पृथ्वीलोक में बसे।
*चारू ,सुचारु ,चित्र ,मतिवान ,हिमवान ,
चित्रचारू, अरूण ,अतीन्द्रिय ,भानु ,विभानु ,विश्वभानु ,
और वीर्य ,विर्य्यावान,है।*
प्राचीन काल में किसी भी लेखनी कार्य को करने के लिए मुद्रण मशीन याने प्रिटिंग मशीन को पैरों से इस्तेमाल किया जाता था।
धीरे धीरे आधुनिक तकनीकी युग में तरक्की होती गई हाथों से टाइप राइटर प्रिंटिंग मशीन में कोरे कागज डालकर सारी जरूरी सामग्री को लेखनी के रूप में तैयार कर लिया जाता था।
अब आधुनिकता की दौड़ में विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे मन मस्तिष्क में जो भी विचार आते जाते रहते हैं उन चित्रों के माध्यम से गुप्त सूचना एकत्रित कर गोपनीय रखी जाती है औरअंत समय में जन्म से मृत्यु तक की घटनाओं को दृष्टि पटल पर रखे जाते हैं ।उन्हीं नियमों के आधार पर जीवों को लोक परलोक ,स्वर्ग ,नर्क ,जीवन ,मरण ,व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश चित्रगुप्त जी भगवान ही करते हैं।
विज्ञान ने भी यह बात सिद्ध कर दिया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय तक कार्य करता है और उसके दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं में चित्र मस्तिष्क में चलते ही रहते हैं।
शनिदेव दंडाधिकारी है प्रत्येक मनुष्य के कार्य के आधार पर ही सजा सुनाई जाती है।
चित्रगुप्त जी अपने परमपिता ब्रम्हा जी से प्रश्न किया …..?
संसार में मनुष्यों की जनसंख्या इतनी अधिक बढ़ते जा रही है कि रोज असंख्य मनुष्य जन्म ले रहे हैं ,इतनी अधिक संख्या में मनुष्य पैदा होने से मैं कितने लोगों का पाप पुण्य लेखा जोखा हिसाब किताब रखूँ ,कितने कर्मचारी रखते जाऊं मुझे समझ नही आ रहा है…..? मेरी परेशानी को हल करने के लिए कुछ समाधान निकाल दीजिये।
ब्रम्हा जी ने अपने मानस पुत्र को आश्वासन देकर कहा ठीक है ।मैं कुछ उपाय ढूंढ़ता हूँ।
कुम्भकर्ण को खाने का बहुत शौक था वह चाहता था कि जिंदगी भर बस कुछ न कुछ खाते ही रहे ,उसकी भूख कभी खत्म ही नहीं होती थी भूख व अच्छा भोजन को लेकर तपस्या करने लगा था और स्वर्गलोक भी पाना चाहता था ताकि इंद्रदेव की जगह राजगद्दी में बैठ कर सिर्फ खाते ही रहे उसकी भूख कभी खत्म ना हो ……!
तभी उनकी माता व भाईयों ने कहा तपस्या करके ब्रम्हा जी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लो, ताकि वह स्वर्गलोक का इंद्रासन ले सके।
कुम्भकर्ण ने ब्रम्हा जी की तपस्या की ,जब ब्रम्हा जी को कुम्भकर्ण के मन की इच्छा का ज्ञात हुआ तो वे काफी चिंतित हुए क्योंकि अगर कुम्भकर्ण को मनचाहा वरदान दे दिया जाये तो वह सारी पृथ्वी का भोजन अकेला ही खा जाएगा।
जब वरदान मांगने ब्रम्हा जी के पास आया तब सारे देवता ब्रम्हा जी के समीप आए ,और कहने लगे कि आज कुम्भकर्ण आपसे वरदान में इंद्रासन माँगने वाला है ताकि वह स्वर्ग का मालिक बन जाए और स्वर्गलोक की सारी चीजें अकेला ही खा जाएगा फिर जगत में त्राहि त्राहि मच जायेगी।
अब क्या होगा ….?
तभी माता सरस्वती देवी जी ने कहा – आप सभी देवगण चिंता मत कीजिये ,जैसे ही कुम्भकर्ण ब्रम्हा जी से वरदान माँगेगा मैं उसके जीभ में विराजमान हो इंद्रासन की जगह निंद्रासन जुबान पर बोल दूँगी।
कुम्भकर्ण जब ब्रम्हा जी के पास वरदान माँगने आया तो उसकी जुबान से इंद्रासन की जगह निंद्रासन निकल गया और ब्रम्हा जी ने तथास्तु कह दिया …..!
वरदान पाकर कुम्भकर्ण निराश हो गया ,तब ब्रम्हा जी को थोड़ी सी दया आ गई और कहने लगे मैं इतना कर सकता हूँ कि तुम्हें छः महीने निद्रासन सोने के लिए और एक दिन जागने के लिए वरदान दे सकता हूँ।
छह महीने सोना उसके बाद एक दिन जब जागोगे तब खूब छक कर खाना अगले छह महीने के लिए फिर से सो जाना।
ये जगत में भलाई के लिए किया गया छल था क्योंकि अगर कुम्भकर्ण अधिक दिन तक जागता तो सभी जीवों के लिए देवताओं के लिए परेशानी खड़ी हो जाती।
आज वर्तमान स्थिति को देखते हुए चित्रगुप्त जी अपनी यही परेशानियों का हल ढूंढने के लिए ब्रम्हा जी से यही निवेदन कर रहे हैं कि इतनी घोर आबादी जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए कितने मनुष्यों का पाप पुण्य का लेखा जोखा अकेले कैसे लिखूँ …..?
कहाँ से इतना बहीखाता बनाऊँ ….?
कितने सहयोगी कर्मचारी रखूँ ….?
ये सारी समस्याओं का समाधान का हल कैसे निकालूँ ….? ?
ब्रम्हा जी ने अपने मानस पुत्र से कहा –
मैंने जनसंख्या वृद्धि कम करने का तरीका ढूंढ़ लिया है दुनिया भर में नई नई विभिन्न प्रकार की बीमारियों का जाल बिछा दिया गया है जिससे लोग कोई न कोई बीमारी से मृत्यु को प्राप्त होते जायेंगे ।
बहुत सी नई बीमारियों से इंसान मरते जाएंगे कम से कम प्राणी पैदा हो इसलिये नई बीमारी ड़ेंगू , चिकनगुनिया ,वायरल बुखार ,कोरोना वायरस ,डेल्टा ,ब्लैक फंगस ,इत्यादि नई बीमारी से रोजाना मृत्युदंड मिलते ही रहेगाऔर लोग मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे।जनसंख्या की दर कम होती जायेगी।
कोरोना महामारी की भयानक प्रकोप से पूरा विश्व भयभीत हो गया है आधे डर से ही मर गए आधे अकाल मृत्यु को चले गए है।
ब्रम्हा जी ने कहा चित्रगुप्त तुम चिंता क्यों करते हो ,अब मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया है और ऐसी अनेक नई बीमारी उत्पन्न करके इंसानों को मृत्युलोक में पहुंचा दिया जाएगा।
जो जन्म लिया है ,वो एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो अपने कर्मों के हिसाब से स्वर्गलोक ,नर्क में जाता जाएगा। कलयुग में वैसे भी आधुनिक तकनीकी करण से व्यक्ति का जीवनकाल कम ही होते जाएगा।
बीस या तीस उम्र में ही जीवनलीला समाप्त हो जाएगी, जल्द से जल्द जीवन खत्म हो जाएगा नई बीमारियों का कारणों का पता ही नही चल पाएगा …? कब कौन कहाँ कैसे जीवन के अंतिम चरण के करीब पहुँच जाएगा।
वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय तक कार्य करता है ,और उसके दौरान जीवन में घटित होने वाले प्रत्येक घटनास्थल घटनाओं का चित्र मस्तिष्क पटल में चलते ही रहता है ,जो वही छाप छोड़ जाती है।
उसी का परिणामस्वरूप हमें स्वर्ग ,नर्क की सजा सुनाई जाती है।
अंततः ब्रम्हा जी के आश्वासन देने के बाद कुछ हद तक चित्रगुप्त जी की परेशानियों का हल निकल पाया ….! ! !
शशिकला व्यास
स्वरचित मौलिक रचना ✍