चिता के सामने गीत संगीत एक अनूठी परंपरा
हमारा देश विविधताओं और अंगूठी परंपराओं से भरा हुआ है। उन्हीं में से एक अनूठी सदियों से चली आ रही परंपरा आपके साथ साझा कर रहा हूं, जी हां अनूठी इसलिए क्या आपने कभी शमशान भूमि पर चिता के सामने ढोल मंजीरे तंबूरा साज बाज के साथ भजन होते देखे हैं? हां जनाब यह भारत में ही संभव है। झारखंड राज्य के बंगाल से लगे हुए कुछ जिलों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, धनबाद बोकारो एवं अन्य जिलों के गांवों में आज भी जारी है। इस पूरे इलाके में जब कोई मृत्यु होती है, श्मशान भूमि में चिता जलाई जाती है और चिता को आग देने के बाद शुरू होता है, ढोल मंजीरे तंबूरा साज बाज के साथ जीव एवं देह तत्व का गायन। जीवन की क्षणभंगुर ता नश्वरता एवं जीव के अनादि होने संबंधी बड़े मधुर भजन गाए जाते हैं, जो शमशान की भयावहता शोक एवं मोह दूर करते हैं। मृत व्यक्ति के स्वजनों का शोक मोह दूर करने की यह परंपरा निभाई जाती है। जो वहां बसे वैष्णव बैरागियों द्वारा निभाई जाती है। जैसे पंडिताई के लिए यजवान होते हैं, उसी प्रकार इस परंपरा हेतु भी बैरागियों के यजमान होते हैं। यजमान के घर मृत्यु समाचार प्राप्त होते ही वैष्णव बैरागी शमशान पहुंच जाते हैं एवं अपने भजनों से जीवन की नश्वरता जीव एवं देह तत्व के निर्गुणी भजन चिता के सामने ही गाते हैं, ताकि मृतक के स्वजनों का शोक मोह दूर हो सके, जीवन की क्षण भंगुरता एवं सत्य का ज्ञान हो सके। कार्तिक माघ वैशाख में वैष्णव बैरागी गांव-गांव अपने यजमानों के घरों में जाते हैं, एवं तीन तीन दिनों तक अखंड कीर्तन की परंपरा निभाते हैं। बताया जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के, चंडी दास के कीर्तन बंगाल एवं बंगाल से लगे हुए बिहार अब झारखंड कुछ उड़ीसा से लगे जिलों में चैतन्य के भाव प्रिय भजनों की परंपरा आज भी जारी है।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी।