चिड़िया
मैं एक ऐसी चिड़िया हूँ,
जिसे पर काटकर,
उड़ने की आजादी दी गयी है,
मेरे सामने दूर तक फैला,
खुला नीला आसमान है,
उड़ने के लिए,
और है एक पूरी दुनिया,
देखने के लिए,
पर मैं जानती हूँ,
कि – मेरे ये पर,
जो काट दिए गये हैं,
इनके सहारे मैं,
फुदक तो सकती हूँ,
यहाँ से वहाँ, कुछ दूरी तक,
लेकिन उड़ नहीं पाऊँगी,
तो क्या मेरे हौसले,
कम हो जायेंगे ?
और रह जायेगा अधूरा,
मेरा दुनिया देखने का ख्वाब?
नहीं ; ऐसा नहीं होगा,
क्योंकि ~
मैंने तय किया है,
अपने इन्हीं कटे परों के सहारे,
फुदक – फुदककर तय करूँगी दूरी,
देखूँगी अपने हिस्से की दुनिया,
अपनी इन नन्हीं – नन्हीं आँखों से।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
वर्ष :- २०१३.