चाहे जितना तू कर निहां मुझको
ग़ज़ल
चाहे जितना तू कर निहाँ¹ मुझको
मेरी ख़ुशबू करे अयाँ² मुझको
मैं बुलंदी पे जाके ठहरूँगा ।
तू जला और कर धुआँ मुझको
है कड़ी धूप आज तो क्या ग़म
मिल ही जायेगा सायबाँ³ मुझको
मैं निगाहों से बात कह दूँगा
जो किया तूने बे-ज़बाँ मुझको
याद नस्लें रखेंगीं अफ़साना
जो बनायेगा दास्ताँ मुझको
चल रहा हूँ जो आज मैं तन्हा
कल मिलेगा तो कारवाँ मुझको
क़त्ल करके ‘अनीस’ मेरा अब
कर दिया तूने जाविदाँ⁴ मुझको
अनीस शाह ‘अनीस’
1.छुपाना 2.प्रकट करना 3.छायादार आश्रय 4.अमर