चाहत की गर्मी मे जलते क्यों नही
चाहत की गर्मी मे जलते क्यों नही
प्यार का मौसम है बदलते क्यों नहीं
बहुत कहते थे मीलों चल सकता हूँ
अब रूक क्यों गये चलते क्यों नहीं
देखो ये काफिले मुद्दतों से प्यासे हैं
तुम बर्फ हो तो पिघलते क्यों नहीं
बिक चुके थे तभी मैं सोचता था कि
शत्रु भी अब तुम्हें खलते क्यों नहीं
फरिश्ते ही होंगे जरा गौर से देखो तो
ये अगर इंसान हैं तो ढलते क्यों नहीं
मारूफ आलम