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18 May 2024 · 1 min read

चार बजे

प्रात: चार बजे की तन्हाई में
रजाई की नरम गरमाई में
हमारी नींद से नयन हैं बोझिल
उनकी मजलिस जमी हुई है!!

सितारों की चमक और ख़्वाब में
अनजाने रास्तों के हिसाब में
हमारे चंचल स्वप्न भी स्वप्निल
उनकी कवायद शुरू हुई है !

अधूरे सपनों का वास्ता है
दिल की धड़कन यादों की आहट,
सुकून की बेसाख्ता तलाश है बस
उनका योगासन बाग़ में ज़ारी!
निद्रा गली के कोने में यादें,
चार बजे की सांसों में बसी है।
पलकों के पन्नों पर थमी मुस्कान,
उनकी चाय चढ़ी हुई है !

चार बजे की अँधेरी तन्हाई में,
सपनों का जहां यत्न से संजोते हैं
हम तो हिसाब सुखों का जोड़ रहे हैं
वो पडोसी के आम और फूल तोड़ रहे हैं !

Language: Hindi
135 Views
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