चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
राम नाम सत्य का, कानों में स्वर आ रहा था
राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है
सब कोई गा रहा था
पथ में श्मशान के, मुझको सुना रहा था
दुख तो मुझे भी बहुत था, संसार छोड़ने का
अफसोस भी बहुत था, शरीर छोड़ने का
न लिया मैंने राम नाम,न सत्य पर ही चला
अनंत कामनाओं का, चलता रहा सिलसिला
मैंने कहा सभी से, सुनिये श्रीमान जी
सुनिये लगा कर कान, देकर के अपना ध्यान जी
गत्य के लिए मैं अब, उपाय क्या करूं
पड़ा हूं निस्तेज मैं, सत्य क्या करूं
अब तो आप ही बंधु,सत्य पर चल सकते हो
राम नाम सत्य से, गत्य शुभ कर सकते हो
जय सियाराम जी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी