चार कंधों पर जब, वे जान जा रहा था
चार कंधों पर जब, वे जान जा रहा था
मन ही मन में अपने, पश्चाताप आ रहा था
राम नाम सत्य है संवेद स्वर आ रहा था
सत्य बोलो गत्य है,हर कोई गा रहा था
राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है
सब कोई गा रहा था
चुपचाप चार कंधों पर, मैं सुने जा रहा था
चार कंधों पर जब, वे जान जा रहा था
पथ में श्मशान के, सिक्के लुटा रहा था
फूलों के साथ मेवा,पथ पर बिछा रहा था
दुख तो मुझे भी बहुत था, संसार छोड़ने का
परिजन और प्रिय जन, ये शरीर छोड़ने का
न लिया मैंने राम नाम,न सत्य पर ही चला
अनंत कामनाओं का, चलता रहा सिलसिला
सत्य और गत्य को, जीवन में दिया भुला
व्यर्थ गया जीवन, मृत्यु ने दिया सुला
मैंने कहा सभी से, सुनिये श्रीमान जी
सुनिये लगा कर कान, देकर के अपना ध्यान जी
सत्य गत्य के लिए अब, मैं उपाय क्या करूं?
पड़ा हूं निस्तेज अब, मैं कर्म क्या करूं?
अब तो बंधु आप ही, ये ध्यान दीजिए
बचे हुए जीवन को, सफल कीजिए
कर से शुभ काम,मुख से राम नाम लीजिए
राम नाम सत्य से, गत्य शुभ कर लीजिए
जय सियाराम जी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी