*चारबैत : गीत और संगीत की अनूठी प्रस्तुति*
चारबैत : गीत और संगीत की अनूठी प्रस्तुति
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चारबैत फारसी भाषा के चाहर बैती का अपभ्रंश है । फारसी में चाहर का अर्थ चार तथा बैती का अर्थ शेर होता है । इस तरह चार शेर की रचना को चारबैत कहा जाता है। शेर का तात्पर्य केवल गजल से नहीं बल्कि गीत आदि किसी भी रूप में जो रचना संगीत के साथ प्रस्तुत की जा सके ,उसका अभिप्राय है ।
1742 से अफगानिस्तान के रोहेला योद्धाओं ने रामपुर रियासत तथा रूहेलखंड पर शासन करना आरंभ किया ,जो 200 साल तक चला । रोहेला अपने साथ संस्कृति के जो बहुत से चिह्न लेकर आए ,उनमें से एक चारबैत भी था । रामपुर रियासत में आकर चारबैत फारसी का या अफगानिस्तान का चारबैत नहीं रहा । वह यहाँ की लोक भाषा में रच बस गया और उसने भारत के स्थानीय परिवेश तथा मिजाज के अनुसार अपने आप को ढाल लिया । इसकी भाषा में हिंदी का लोक-सौंदर्य मुखरित होने लगा । रामपुर के अलावा मध्यप्रदेश में भोपाल तथा राजस्थान में टोंक रियासतों में चारबैत खूब फला- फूला।
चारबैत में रचना जितनी मुख्य होती है,उतनी ही उसकी प्रस्तुति होती है ।एक बड़ी सी डफली के साथ गाते बजाते हुए, झूमते गाते हुए और बड़ा ही सुंदर वातावरण निर्मित करते हुए कविता गाई जाती है। इसका आनन्द उस समय दुगना हो जाता है जब एक प्रतिद्वंद्वी समूह सामने से मंच पर प्रतिस्पर्धा के लिए उपस्थित होता है और वह आशु कविता का चमत्कार दिखाते हुए तत्काल प्रतिद्वंद्वी समूह की रचना का खूबसूरत तोड़ उपस्थित कर देता है। यह कार्य कठिन बल्कि असंभव होता है। इसीलिए चारबैत की मंडली के साथ आशु कवि होना अनिवार्य होता है।
संगीत , नृत्य और कविता सदैव से मनुष्य को उत्साह दिलाने वाली तथा थके हारे क्षणों में अनेक बार मनोरंजन तथा ताजगी प्रदान करने का साधन रहा है। कविता को किस प्रकार से उत्साह और उल्लास के साथ समाज में प्रस्तुत किया जा सकता है और पूरे वातावरण को किस तरह से आनन्दमय बनाया जा सकता है ,चारबैत इसका एक उदाहरण है । मंच पर कविता कला के प्रोत्साहन के साथ-साथ उसे संगीत और सुमधुर स्वर के साथ प्रस्तुत करने की दृष्टि से चारबैत एक प्रभावी कला है। इसकी तुलना काफी हद तक कव्वाली से की जा सकती है । चारबैत का प्राण डफली की धुन की प्रस्तुति है ।
एक चारबैत उदाहरण के तौर पर इस प्रकार है:-
मैं मौसम ए बरसात में हूँ जान से आरी , जीना हुआ भारी
परदेस को पिया जिस वक्त घर से सीधारे, दिल पर चले आरे
फुर्सत में तड़पती है यहाँ विपदा की मारी, जीना हुआ भारी ।।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451