चाय
चाय (वीर रस)
स्वागत होता आज चाय से,
चाय बिना सब कुछ बेकार।
मिले चाय तो खुशहाली है,
मन में होता हर्ष अपार।
संस्कृति का य़ह मुख्य अंग है,
यह सचमुच में शिष्टाचार।
दूध,दही,माठा सब फीके;
सिर्फ चाय से सबको प्यार।
यद्यपि चाय नहीं सुखकारी,
फिर भी लोग इसी के भक्त।
ऐसा लगता,चाय प्रेयसी;
चुस्की लेते हो अनुरक्त।
सारा विश्व हुआ दीवाना,
हाय चाय!तुम भी क्या चीज़।
तेरे पीछे सब पागल हैं,
अन्य पेय लगते नाचीज़।
बनी मोहिनी सब के मन में,
करती रहती लीला रास।
सभी चाहते तुझको रखना,
अपने होठों के ही पास।
तेरे दरश परस की खातिर,
होते रहते सब बेचैन।
जब तुम दिख जाती हो प्यारे,
होता प्रिय मन खुश दिन रैन।
मादक प्याली है मतवाली,
इसे देखते सब मदहोश।
बने पियक्कड़ सभी मस्त हो,
नाचा करते भर कर जोश। लाभ हानि का फर्क न पड़ता,
सिर्फ चाहिए सबको चाय।
धीरे धीरे बड़े प्रेम से,
देते सब पीने की राय।
आदत से मजबूर सभी हैं,
चाय आज है दिव्य प्रसाद।
बनी हुई अब देवि शक्ति है,
भले मिले इससे अवसाद।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।