चापड़ा चटनी
लाल चीटियाँ चापड़ा कहलाती
जो बिकती हाट बाजारों में,
स्वादिष्ट चटनी बनाकर खाते इसे
बस्तर के गलियारों में।
डेंगू-मलेरिया की प्रतिरोधक दवा
ये चापड़ा की चटनी,
बस्तर की सारी जन जातियों में
बहुत है इसकी मंगनी।
अगर बुखार आ जाए तो लोग
लाल चींटियों से कटवाते,
फिर देखते ही देखते मरीज के
सारे ज्वर उतर जाते।
मीठे फलों के पेड़ में अक्सर
चापड़ा घरौंदा बनाती,
पेड़ नीचे बिछे हुए गमछे पर
चींटियाँ झड़ती जाती।
पत्तल-दोनें के मापों में ही
ये हाट में बिक जाती,
इस काम में लगे लोगों को
कुछ मुद्रा मिल जाती।
(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।