मैंने एक चांद को देखा
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मैने एक चांद को देखा,
जो अंधेरा ही अंधेरा था।
जिसकी न सुबह होती थी,
बस अंधेरा ही अंधेरा था
मैंने एक चांद . . . . . .
आंख नम मन बोझल,
न सांझ न सवेरा था।
खिल खिलाते हुए मुखड़े पे,
गम का ही घेरा था।
मैंने एक चांद . . . . . .
न ही तारे न सितारे,
जुगनुओं का न डेरा था।
जुल्फो की काली बदली में,
ढका हुआ एक चेहरा था।
मैंने एक चांद . . . . . .
पांव पायल हाथ कंगना,
बिंदिया न गजरा था।
आंसुओ की ऐसी वर्षा थी,
फैला हुआ बस कजरा था।
मैंने एक चांद . . . . . .
नेताम आर सी