चांद
छिप जाता है जो बरसात की काली रातों में ।
दिखाता है कभी झलक काली बदली में से वो ।
दिल में उठता है कोई दर्द रह-रह कर मेरे ।
इस चांद की तरह कभी नजर आ जाते तुम भी मुझे।
इसकी झलक देख मिलता सुकून है जैसे इन आंखों को।
तुम्हारी झलक दिख जाती तो आता सुकून इस दर्दे दिल को मेरे।
ऐ चांद मेरी आंखें तो ना देख सके उन्हें ।
तुम ही सुना देना दर्दे हाल मेरे दिल का।
जो कभी याद भी ना करते हो चाहे मुझे।
मेरी आंखों का इंतजार तो मिट नहीं सकता ।
मेरे दिल के दर्द को सुकून मिल नहीं सकता ।
अगर देखें तुझे ऐ चांद वो ,तो कहना मन तो मेरा तुम्हारे पास ही रहता है।