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5 Jul 2021 · 1 min read

चांँद एक दीपक

हे ! चांँद क्यों करता है,
तू इतनी यातनाऐं ।

कभी घटता है,
कभी बढ़ता है तू ।

सहसा पूर्ण रूप में आता,
कभी विलुप्त हो खो जाता ।

सदैव सूर्य के समान एक-सा,
क्यों नहीं चमकता रहता ।

पूर्णिमा को प्रकाशित करता,
अमावस्या को एहसास कराता ।

रात धरा का दीपक बन जाता ,
लौ की भांँति जलता-बुझता ।

संध्या आते तू जाग उठता ,
प्रकाश बिखेर कर मार्ग दिखाता ।

क्या ज्ञान की मूरत है तू ,
या प्रकाश का मार्ग दाता ।

दीपक की भांँति प्रकाशित होता,
या घी की कमी से बुझ जाता ।

चांँद एक दीपक हो तुम,
इस धरा का सहचर हो तुम।

?
**बुद्ध प्रकाश ;
**मौदहा ,हमीरपुर ।

Language: Hindi
3 Likes · 199 Views
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